ईशावास्य उपनिषदाचा आठवा मंत्र आहे-
स पर्यगात शुक्रं अकायं अव्रणं अस्नाविरं शुद्धमपापविद्धम,
कविर्मनीषी परिभू: स्वयंभू: याथातथ्यतो अर्थान् व्यदधात शाश्वतिभ्य: समाभ्य:
`अर्थ- वह स्वयंभू ईश्वर सर्वत्र है. शुद्ध है. कायारहित, दोषरहित, मांसपेशियारहित, पवित्र-पाप रहित, कवि, सर्वज्ञ, सर्वव्यापी है वह. उसने चिरंतन प्रजातियों को अपने अपने काम सौंप दिए है.'
थोडक्यात- सर्वव्यापी ईश्वराला `कवी' हे विशेषण वापरले असून; हा संपूर्ण सृष्टीविलास ही त्याची नितांत रमणीय अशी कविता आहे असा अर्थ अभिप्रेत आहे.
यावर रामकृष्ण मठाचे पूर्व अध्यक्ष स्वामी रंगनाथानंद म्हणतात-
`आत्मा का एक और सुंदर विशेषण यहाँ है- कवि, ऋषी, क्रांतदर्शी. वह महान कवि है. संसार उसकी कविता है, जो तुकबंदी और पद्यों में निकल रही है. कवि शब्द का अर्थ कविता बनानेवाला नहीं है; बल्कि कवि वह है जो दूरदर्शी है, क्रान्तिदर्शी है, जिसमे सूक्ष्म दृष्टी है; तथा जो वस्तुओं के आंतरिक महत्व को देख और समझ सकता है. संसार के बड़े कवि आत्मा के साथ इस गुण में भागीदार है. साधारण रसहीन शुष्क मन के लिए जो बात सामान्य और अर्थहीन है; कवि के लिए वह अर्थ और महत्व से भरा हुआ है. जैसे शेक्सपिअर की काव्यमयी सूक्ष्म दृष्टी का चित्रण करनेवाली एक अंग्रेजी कविता में कहा गया है-
जब पडती है कवि की दृष्टी
गली भी अभिनय रूप लेती है
जब शेक्सपिअर पास से गुजरता है...
कवि के लिए प्रत्येक क्रिया, प्रत्येक अनुभव, प्रत्येक घटना, काव्य के सुझाव से भरी है. उसका संवेदनशील मन उन में अर्थ और महत्व देखता है. प्रकृति में कोई वस्तु या घटना नहीं जो विश्व को आत्मा के साथ आत्मसात न करती हो. कवि दिव्य कवि (ईश्वर) के साथ क्षणिक नाता जोड़कर प्रकृति के दिव्य स्पंदन का अनुभव करता है. साधारण व्यक्ति केवल शुष्क, विभिन्न तथ्यों और घटनाओं को देखता है. अंग्रेजी कवि शेली कहता है, कवि संसार के अस्वीकृत विधायक है.'
- कवी म्हणजे काय? कविता म्हणजे काय? अशी चर्चा बरेचदा होते. वरील विवेचनानुसार, ज्याची दृष्टी सूक्ष्म आहे आणि जो व्यक्ती, वस्तू, घटना, अनुभव, विषय यांचा अर्थ, महत्व आणि आत्मा जाणू शकतो. अन कविता म्हणजे या आत्म्याची अभिव्यक्ती.
- श्रीपाद कोठे
२१ मार्च २०२१
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