उन्होंने (दत्तात्रय जी होसबले- सहसरकार्यवाह, रा.स्व. संघ) बिलियर्ड खिलाड़ी गीत शेट्टी की पुस्तक (सक्सेस वर्सिस जॉय) का उदाहरण देते हुए कहा कि शेट्टी ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि जब वह बिलियर्ड के पहली बार विश्व विजेता बने तो उन्हें बड़ा धन मिला, सम्मान मिला, उन्हें कई जगह बुलाया गया। दूसरी बार वे प्रतियोगिता में हार गए। उनके मन में अंतर्द्वंद्व चलता रहा। अंत में वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि मैं सफलता के लिए खेल को खेला इसलिए हार गया। मैंने खेल का आनंद नहीं लिया। इसके बाद उन्होंने मन में धारणा बनाई कि वे सिर्फ आनंद के लिए खेलेंगे। उन्होंने ऐसा सोचा और खेले, फिर वे जीत गए। वे नौ बार विश्वविजेता बने। इसलिए सेवाकार्य जब करें तो सफलता के लिए नहीं, बल्कि आनंद के लिए करें। (आभार- पांचजन्य)
पांचजन्य में प्रकाशित यह वक्तव्य सभीसे साझा करने के कुछ कारण है-
१) संघ के सेवाकार्यों का भाव स्पष्ट हो.
२) संघ के नेता/ कार्यकर्ता कुछ पढ़ते नहीं, जानकारी रखते नहीं, दुनिया से कटे रहते है, अपने ही खयालों में खोये रहते है, संघ से बाहर कुछ अच्छा हो तो उसकी ओर ध्यान भी नहीं देते, जीवन के संबंध में वो अनभिज्ञ रहते है; इत्यादि जो बातें चलती है, ऐसी जो धारणाएँ समाज में है; वह ठीक हो.
- श्रीपाद कोठे
१४ एप्रिल २०१५
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